गृह विज्ञान (Home Science) का इतिहास:
गृह विज्ञान, जिसे घरेलू विज्ञान या गृह अर्थशास्त्र (Home Economics) भी कहा जाता है, एक बहुआयामी विषय है। यह मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे भोजन, पोषण, वस्त्र, परिवार प्रबंधन, स्वास्थ्य, और सामाजिक संबंधों के अध्ययन पर केंद्रित है। इसकी उत्पत्ति, विकास और भारत में इसके इतिहास को समझने के लिए इसकी वैश्विक पृष्ठभूमि और भारतीय संदर्भ दोनों को देखना आवश्यक है। Home science history को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें सर्वप्रथम इसके वैश्विक इतिहास को समझना पड़ेगा |
गृह विज्ञान का वैश्विक इतिहास
गृह विज्ञान की शुरुआत 19वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों में हुई, जब समाज में औद्योगिक क्रांति और शहरीकरण के कारण पारिवारिक जीवन और घरेलू कार्यों के स्वरूप में बदलाव आया।
- औद्योगिक क्रांति का प्रभाव:
- औद्योगिक क्रांति ने महिलाओं को घरेलू कार्यों के प्रबंधन में अधिक कुशल बनने की आवश्यकता को जन्म दिया।
- शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के अधिकारों की मांग ने घरेलू कार्यों को विज्ञान आधारित अध्ययन में परिवर्तित करने की प्रेरणा दी।
- प्रारंभिक शिक्षा और शोध:
- 19वीं शताब्दी में, कैथरीन बीचर और एलेन स्वालो रिचर्ड्स जैसे समाज सुधारकों ने गृह विज्ञान को एक शैक्षणिक विषय के रूप में विकसित करने का प्रयास किया।
- 1909 में, अमेरिका में American Home Economics Association की स्थापना हुई। इसने इस विषय को व्यवस्थित ढंग से पढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया।
- गृह विज्ञान को महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता से जोड़कर देखा गया।
- 20वीं शताब्दी में विकास:
- इस विषय का विस्तार केवल घरेलू कार्यों तक सीमित न रहकर, पोषण विज्ञान, वस्त्र प्रौद्योगिकी, आहार योजना और बाल विकास जैसे क्षेत्रों तक हो गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और बाद में, गृह विज्ञान का महत्व बढ़ा क्योंकि इसका उपयोग युद्ध के समय संसाधनों के प्रबंधन और संतुलित आहार की योजना बनाने में हुआ।
भारत में गृह विज्ञान का इतिहास
भारत में गृह विज्ञान का इतिहास 20वीं शताब्दी की शुरुआत से जुड़ा हुआ है, जब महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया जाने लगा। सामाजिक सुधार आंदोलनों, महात्मा गांधी और अन्य नेताओं द्वारा महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा पर बल ने इस विषय को भारत में स्थापित करने में मदद की।
- प्रारंभिक चरण (1900-1947):
- औपनिवेशिक युग के दौरान महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए मिशनरी स्कूलों और समाज सुधारकों ने कार्य किया।
- महिलाओं की शिक्षा में घरेलू कौशल जैसे सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाना और घर का प्रबंधन शामिल था।
- 1932 में लेडी इरविन कॉलेज, नई दिल्ली की स्थापना हुई, जो भारत में गृह विज्ञान शिक्षा का पहला प्रमुख संस्थान बना।
- इस अवधि में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए गृह विज्ञान को उपयोगी माना गया।
- आजादी के बाद का दौर (1947-1980):
- आजादी के बाद, भारत में शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण बदल गया। महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कदम उठाए।
- गृह विज्ञान को एक अकादमिक विषय के रूप में मान्यता मिली और इसे कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगा।
- विषय का दायरा बढ़कर पोषण विज्ञान, पारिवारिक अध्ययन, और सामुदायिक विकास तक फैल गया।
- आधुनिक युग (1980 के बाद):
- 1980 और उसके बाद के दशक में, गृह विज्ञान ने महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक व्यावसायिक शिक्षा का रूप ले लिया।
- इसने रोजगार के नए अवसर प्रदान किए, जैसे पोषण विशेषज्ञ, वस्त्र डिजाइनर, सामाजिक कार्यकर्ता, और काउंसलर।
- शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव के साथ, विषय का महत्व बढ़ गया।
गृह विज्ञान के प्रमुख घटक
गृह विज्ञान के विकास के साथ इसके प्रमुख घटकों का भी विस्तार हुआ। भारत में गृह विज्ञान के अध्ययन में निम्नलिखित विषय शामिल हैं:
- खाद्य और पोषण विज्ञान (Food and Nutrition):
- संतुलित आहार और पोषण संबंधी जागरूकता का प्रचार।
- भोजन की गुणवत्ता और सुरक्षा पर जोर।
- वस्त्र और परिधान विज्ञान (Textiles and Clothing):
- वस्त्र प्रौद्योगिकी और परिधान निर्माण का अध्ययन।
- परंपरागत वस्त्रों और आधुनिक फैशन के बीच संतुलन।
- परिवार संसाधन प्रबंधन (Family Resource Management):
- वित्तीय प्रबंधन, समय प्रबंधन, और संसाधनों के कुशल उपयोग का अध्ययन।
- मानव विकास और बाल कल्याण (Human Development and Child Welfare):
- बच्चों और किशोरों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास का अध्ययन।
- परिवार और समाज में सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाने पर जोर।
- सामुदायिक विकास (Community Development):
- ग्रामीण और शहरी समुदायों में सामाजिक समस्याओं को समझना और उनका समाधान करना।
भारत में गृह विज्ञान की चुनौतियाँ और भविष्य
- चुनौतियाँ:
- परंपरागत रूप से, गृह विज्ञान को केवल महिलाओं के लिए एक विषय माना गया, जिससे इसके प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण विकसित हुआ।
- इसके व्यावसायिक और वैज्ञानिक पहलुओं को समाज में पर्याप्त मान्यता नहीं मिली।
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विषय को समान रूप से प्रोत्साहित नहीं किया गया।
- भविष्य की संभावनाएँ:
- आज, गृह विज्ञान को लैंगिक सीमाओं से परे एक व्यावसायिक और व्यावहारिक विषय के रूप में देखा जा रहा है।
- डिजिटल युग में, गृह विज्ञान ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल फैशन डिजाइन, और पोषण विशेषज्ञता के नए क्षेत्रों में विस्तार कर रहा है।
- इसके अनुसंधान और विकास में नई तकनीकों का उपयोग, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विश्लेषण, इसके दायरे को और बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष
गृह विज्ञान एक ऐसा विषय है जो न केवल व्यक्तिगत जीवन को सुधारने में सहायक है, बल्कि सामुदायिक और राष्ट्रीय विकास में भी योगदान देता है। भारत में इस विषय का इतिहास समाज के बदलते स्वरूप और महिलाओं की शिक्षा के विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है। आधुनिक युग में, यह एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जो व्यक्तियों को आत्मनिर्भरता और सामाजिक योगदान के लिए तैयार करता है। गृह विज्ञान की प्रासंगिकता आज पहले से अधिक है, क्योंकि यह जीवन के हर पहलू में गुणवत्ता और संतुलन लाने का माध्यम है।
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